Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती) Hindi Quotes

Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती) Hindi


1





वर्तमान जीवन का कार्य अंधविश्वास पर पूर्ण भरोसे से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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वेदों, पुराणों में जो कुछ बताया गया है, यदि हम उसका पालन करें तो हम जान जायेंगे की जीवन को असली उद्देश्य क्या है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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हर कोई ये जानता है, मृत्यु को टाला नहीं जा सकता। फिर भी अधिकतर लोग अन्दर से इसे नहीं मानते। सोचते हैं ‘ये मेरे साथ नहीं होगा।’

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




4



इंसान को अपने नश्वर शरीर के बजाए, ईश्वर से प्रेम करना चाहियें, सत्य और धर्म से प्रेम करना चाहियें।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




5



जिस मनुष्य मे संतुष्टि के अंकुर फुट गये हों, वह इस संसार के सुखी मनुष्यों मे गिना जाता है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




6



यदि मनुष्य का मन शाँन्त है, चित्त प्रसन्न है और ह्रदय हर्षित है, तो निश्चय ही ये अच्छे कर्मो का फल है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




7



आत्मा ‘परमात्मा’ का ही एक अंश है जिसे हम अपने कर्मो द्वारा गति प्रदान करते हैं। फिर आत्मा हमारी दशा तय करती है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




8



लोगों को भगवान् को जानना और उनके कार्यों की नक़ल करनी चाहिए। पुनरावृत्ति और औपचारिकताएं किसी काम की नहीं हैं।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




9



मद मनुष्य की वो स्थिति या दिशा है, जिसमे वह अपने मूल कर्तव्य से भटक कर विनाश की ओर चला जाता है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




10



उपकार बुराई का अंत करता है, सदाचार की प्रथा का आरंभ करता हैं और लोक कल्याण एवं सभ्यता में योगदान देता है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




11



ईष्या से मनुष्य को हमेशा बचना चाहिए। क्योकि ये व्यक्ति को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




12



कोई भी मानव ह्रदय सहानभूति से वंचित नहीं है। कोई धर्म उसे सिखा पढ़ा कर नष्ट नहीं कर सकता।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




13



मोह एक अत्यंन्त विस्मित जाल है, जो बाहर से अति सुन्दर और अन्दर से अत्यंन्त कष्टकारी है। जो इसमे फँसा वो पुरी तरह उलझ कर रह गया।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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इंसान द्वारा किया गया गलत कार्य उसके विवेक को भ्रमित करता है और उसे पतन को और ले जाता है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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लोभ वो अवगुण है, जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है, जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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आत्मा अपने स्वरूप में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक हैं।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




17



अज्ञानी होना कोई गलत बात नहीं है, परन्तु अज्ञानी बने रहना गलत बात है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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हमें पता होना चाहिए कि भाग्य भी कमाया जाता है और थोपा नहीं जाता। ऐसी कोई कृपा नहीं है जो कमाई ना गयी हो।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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एक मनुष्य जो दूसरों का मांस खाकर अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे बढ़कर नीच कौन होगा।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




20



मानव जीवन मे ‘तृष्णा’ और ‘लालसा’ यह दोनों दुखः के मूल कारण है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




21



माफ़ कर देना हर किसी के बस की बात नहीं है। क्योंकि यह विवेकशील लोगों को काम होता है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




22



गीत व्यक्ति के मर्म का आह्वान करने में मदद करता है। बिना गीत के, मर्म को छूना मुश्किल है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




23



जो लोग दूसरों की मदद करते हैं वो एक तरह से भगवान की मदद करते हैं।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




24



क्रोध का भोजन ‘विवेक’ है, अतः इससे बचके रहना चाहिए, क्योकी विवेक नष्ट हो जाने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




25



जो व्यक्ति सबसे कम ग्रहण करता है और सबसे अधिक योगदान देता है वह परिपक्कव है, क्योंकि जीने मेंही आत्म-विकास निहित है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




26



मनुष्य की विद्या उसका अस्त्र है, धर्म उसका रथ, सत्य उसका सारथी और उसकी भक्ति ‘रथ के घोड़े’ होते हैं।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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वेदों मे वर्णीत सार का पान करने वाले ही यह जान सकते हैं कि ‘जिन्दगी’ का मूल बिन्दु क्या है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




28



हर इंसान को अपना पल पल आत्मचिंतन में लगाना चाहिऐं क्योंकि हर क्षण हम परमेश्वर द्वारा दिया गया समय खो रहे हैं।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो, सबसे उच्च कोटि की सेवा है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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ये ‘शरीर’ ‘नश्वर’ है, हमें इस शरीर के जरीए सिर्फ एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि, ‘मनुष्यता’ और ‘आत्मविवेक’ क्या है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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दुनिया में सबसे बढ़िया संगीत यंत्र इंसान की आवाज़ है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




32



दुनियाँ को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिये आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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काम करने से पहले सोचना बुद्धिमानी, काम करते हुए सोचना सतर्कता, और काम करने के बाद सोचना मूर्खता है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




34



जिस इंसान में अहंकार ने वास किया, उस इंसान का विनाश होना निश्चित है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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हानि से निपटने में सबसे जरूरी चीज़ है उससे मिलने वाले सबक से सीखना और न दोहराना। यह आपको सही मायने में विजेता बनता है।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)




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कोई मूल्य तभी मूल्यवान है जब मूल्य का मूल्य स्वयं के लिए मूल्यवान हो।

- Swami Dayanand Saraswati (स्वामी दयानन्द सरस्वती)


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